रायपुर। श्री रावतपुरा सरकार यूनिवर्सिटी, रायपुर में कला संकाय के समाज कार्य विभाग द्वारा भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले का जन्मदिवस मनाया गया। भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सावित्रीबाई फुले का योगदान ऐतिहासिक और प्रेरणादायक है। उन्होंने न केवल शिक्षा को एक अधिकार के रूप में स्थापित किया, बल्कि वंचित वर्गों और महिलाओं को शिक्षा सुलभ बनाने के लिए प्रयास किए। उनके कार्यों ने शिक्षा को समाज में समानता और न्याय की स्थापना का माध्यम बनाया।
इस अवसर पर कला संकाय के अधिष्ठाता प्रो. मनीष पांडे ने कहा कि हमें महापुरुषों और महापुरुषाओं के जन्मदिवस केवल उत्सव के रूप में नहीं मनाना चाहिए, बल्कि उनके विचारों और शिक्षाओं को आत्मसात करके समाज के विकास में योगदान देना चाहिए। उन्होंने सावित्रीबाई फुले के संघर्षों को याद करते हुए कहा कि उनका उद्देश्य बेहतर समाज और समानता की स्थापना था।

समाज कार्य विभाग के सहायक प्रोफेसर नरेश गौतम ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सावित्रीबाई फुले के लिए यह कार्य आसान नहीं था। उस समय की सामाजिक संरचना में महिलाओं, दलितों और आदिवासियों को शिक्षा से वंचित रखा गया था। उन्होंने सामाजिक बाधाओं को चुनौती देते हुए महिलाओं और दलितों के लिए शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित किया। साथ ही, 1853 में बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना कर उन्होंने बाल हत्या जैसी कुरीति पर रोक लगाने का प्रयास किया।
भूगोल विभाग की सहायक प्राध्यापक डॉ. सुनीता सोनवानी ने कहा कि आज भी महिलाओं के लिए चुनौतियाँ समाप्त नहीं हुई हैं। समाज बदल रहा है, लेकिन महिलाओं के अधिकारों की लड़ाई अभी भी जारी है। अंग्रेजी विभाग की डॉ. राशि ने कहा कि सावित्रीबाई फुले ने छुआछूत, लैंगिक भेदभाव और पितृसत्ता को चुनौती देते हुए शिक्षा को सशक्तिकरण का माध्यम बनाया। उनकी शिक्षा और कार्यों की प्रासंगिकता आज के समय में और भी बढ़ गई है।
आयोजन का संचालन और आभार ज्ञापन हिन्दी विभाग की डॉ. पायल ने किया। उन्होंने सावित्रीबाई फुले को कवयित्री और समाज सुधारक के रूप में याद करते हुए उनकी एक कविता का पाठ किया। इस अवसर पर समाज कार्य विभाग की डॉ. मनीषा बोस, पत्रकारिता विभाग के श्री केशव, डॉ. ओमप्रकाश, बिक्रमजीत सेन, कला संकाय के शिक्षक और छात्रों ने अपनी गरिमामय उपस्थिति दर्ज कराई।
यह आयोजन न केवल सावित्रीबाई फुले के योगदान को सम्मानित करने का अवसर बना, बल्कि उनके विचारों को आज के समाज में प्रासंगिक बनाए रखने का एक प्रेरक प्रयास भी रहा।