रायपुर. छत्तीसगढ़ में 3,000 आदिवासी बीएड शिक्षिकाओं को नौकरी से हटाने के फैसले ने राज्य में आक्रोश की लहर पैदा कर दी है। ये महिलाएं न केवल अपने रोजगार, बल्कि सम्मान और आत्मनिर्भरता के लिए संघर्ष कर रही हैं। रायपुर की सड़कों पर पिछले 37 दिनों से इन शिक्षिकाओं का आंदोलन जारी है, लेकिन सरकार और मीडिया का मौन इस मुद्दे को और गंभीर बना रहा है।
आदिवासी महिला शिक्षकों पर पुलिस बर्बरता
शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहीं इन शिक्षिकाओं पर पुलिस द्वारा की गई बर्बरता ने भारतीय लोकतंत्र और मानवाधिकारों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। रिपोर्टों के अनुसार, पुलिस ने महिलाओं के बाल खींचे, उनके कपड़े फाड़े और उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई। इस तरह की हिंसा सरकार और प्रशासन की असंवेदनशीलता और दमनकारी नीति को दर्शाती है।
राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप
आदिवासी शिक्षिकाओं का कहना है कि यह कार्रवाई राजनीतिक प्रतिशोध का हिस्सा है। ये नौकरियां कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में दी गई थीं, और अब बीजेपी सरकार द्वारा इन्हें खत्म करना शिक्षिकाओं के सपनों पर प्रहार जैसा है। क्या राज्य में राजनीतिक मतभेदों का बोझ अब छात्रों, युवाओं और शिक्षकों पर डाला जाएगा?
महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान पर सवाल
बिना महिला पुलिस की मौजूदगी के महिलाओं पर पुलिसकर्मियों द्वारा जबरदस्ती करना राज्य में कानून-व्यवस्था और महिलाओं की सुरक्षा के दावों को कठघरे में खड़ा करता है। यह घटना यह सवाल उठाती है कि क्या आदिवासी महिलाओं को इस देश में न्याय और समानता का अधिकार है?
मांग: दोषियों पर सख्त कार्रवाई हो
इस मामले ने पूरे राज्य को झकझोर कर रख दिया है। जनता और सामाजिक संगठनों ने इस बर्बरता की कठोर निंदा करते हुए दोषी पुलिसकर्मियों और प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की है। महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान की रक्षा करना हर सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है।
छत्तीसगढ़ में जारी यह आंदोलन न केवल आदिवासी शिक्षिकाओं के अधिकारों की लड़ाई है, बल्कि यह देश में न्याय, समानता और मानवाधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण संदेश भी है।